तिल की पैदावार में टीकेजी 21 बेहतर, कृषि वैज्ञानिक करेंगे रिसर्च

रायपुर। धार्मिक अवसरों पर (पितर पूजा, हवन सामग्री) प्राचीन काल तिल का उपयोग होता आ रहा है। सबसे अधिक क्षेत्रफल में तिल की खेती भारत में ही होती है। तिल दो रंग की काली व सफेद होती है। सफेद बीज वाली किस्मों में तेल का प्रतिशत अधिक होता है। इसका भाव भी अच्छा मिलता है। इंदिरा गांधी कृषि विवि के वैज्ञानिकों के अनुसार रमा सलेक्शन-5, टीकेजी-21, टीकेजी-22, जेटी-7, कृष्णा आदि छत्तीसगढ़ के लिए उपयुक्त तिल की उन्नात किस्में हैं। इनमें से कुछ किस्में विलुप्ति के कगार पर हैं। टीकेजी 21 की पैदावार बेहतर मानी गई है। इस पर विवि व कृषि विज्ञान केंद्र में रिसर्च शुरू किया जा रहा है। हालांकि इस बार के बेमौसम बरसात से तिल की फसल को तैयार होने से पहले काफी नुकसान हुआ है।तिल के दानों में 45-50 फीसद तेल मिलता है। इसमें 20 प्रतिशत प्रोटीन पाई जाती है। तिल के 100 ग्राम बीज से 592 कैलोरी ऊर्जा मिलती है। तिल के कुल उत्पादन का 77 प्रतिशत तेल निकालने में तथा 20 प्रतिशत हिस्सा मीठे व्यंजन (गजक, तिलकुट, रेवड़ी) बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। इसके तेल का उपयोग खाने, साबुन बनाने, सौन्दर्य प्रसाधनों, सुगंधित तेल के निर्माण आदि में किया जाता है।सिंचाई की सुविधा होने पर तिल की खेती सभी मौसम में की जा सकती है। खरीफ में तिल की फसल जून के प्रथम सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह तक बोई जाती है। पलेवा देकर अप्रैल-मई में भी बोनी की जा सकती है। अगेती बोआई में वानस्पतिक वृद्घि अधिक तथा खरपतवार प्रकोप कम होता है। देर से बोई गई फसल में फूल आने की अवस्था बढ़ जाती है। रबी की फसल मध्य अक्टूबर से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक बोई जाती है। सिंचित क्षेत्रों में फरवरी-मार्च से लेकर मई-जून तक तिल की बोआई की जा सकती है।